नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-32
लक्षणा इन सबके बीच उस अवसर को खो बैठी जिससे वह, वहां उस तप स्थली में प्रवेश पा सकती थी, क्योंकि प्रातः पूजन का समय प्राप्त हो चुका था। लेकिन लक्षणा का अंतर्मन प्रसन्न था, कि उसने एक प्राणी की जान बचाई। लेकिन इस बात का दुख भी था कि वह अपना मूल लक्ष्य प्राप्त न कर सकी।
यही सोचते हुए कदंभ और लक्षणा एक दूसरे की तरफ देख रहे थे, कि तभी एक तेज रोशनी के साथ एक पूरी गुफा प्रकाशमान हो चुकी थी, और वह कुत्ता अचानक एक सुनहरे पुरुष का रूप लेने लगा। हिमगिरी पर्वत के निकट गुरुदेव के कहे अनुसार किसी भी नकारात्मक शक्ति का प्रभाव लगभग शून्य होता है, इसलिए भय की कोई बात नहीं है।
ऐसा स्वरूप और चमत्कार देख, कदंभ और लक्षणा थोड़ा सजग हो उसकी ओर देखने लगे। वे और भी ज्यादा प्रसन्नचित्त थे। क्योंकि अब तक उन्हें उस कुत्ते का दर्द असहाय मालूम पड़ रहा था, और वे समझ नहीं पा रहे थे कि कैसे उसका उपचार किया जाए। तभी एक अट्ठाहास के साथ वह दिव्य स्वरूप कहने लगे।
कदंभ और लक्षणा मैं प्रसन्न हूं, कि तुमने एक मूक प्राणी के दर्द को समझा। तुम चाहते तो अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ सकते थे । लेकिन तुमने अपना प्रमुख लक्ष्य लोक कल्याण के लिए बना रखा है। जिससे मैं अति प्रसन्न हूं।
लक्षणा में राहु जिसे ग्रह नक्षत्रों में प्रसन्न करना अत्यंत कठिन है। तुम्हें वरदान देता हूं कि जहां कहीं भी कैसी भी परेशानी हो, मेरा कालचक्र का प्रभाव सदा ही तुम्हारे लिए लाभप्रद होगा। नागपत्री के दर्शन के समय मैं वर्षों से प्रतीक्षा कर रहा था, कि कोई ऐसा प्राणी उसका सानिध्य प्राप्त करें। जो जीव जंतु, गंधर्व ,राक्षस ,देव , दानव या फिर छोटे से छोटे प्राणी में कोई अंतर न समझे।
ऐसा नहीं कि दानवीर शक्तियां सदाचार को नहीं मानती या उनमें प्राण नहीं होते। यह सिर्फ योग कथन है। जिसके पीछे उनका भय और कुछ दानवों का छलकपट जो कि उनका स्वभाव है, कि प्रकृति के कारण हुआ है। लेकिन तुममें सभी को एक समान भाव से देखने की जो भावना है, उससे मैं अति प्रसन्न हूं। इसलिए मैं राहु और मेरा विभक्त शरीर केतू हम दोनों ही तुम्हें अपने प्रभाव से मुक्त करते हैं। और जिस गुफा में तुम मुझे लेकर आए हो, उत्तम भावनाओं के साथ,, यही तुम्हारी तपस्थली होगी। तुम्हारा कल्याण हो कहते हुए वे अंतर्ध्यान हो गए।
अंतर्मन में गूंजता शंख और झरनों की कल कल आवाज़ स्पष्ट कर रही थी, की तपस्थली पर तपस्या का समय काल जैसा कि गुरुदेव ने बताया था, अब समाप्त हुआ। अब कदंभ और लक्षणा को अपने अगले चरण की ओर आगे बढ़ना चाहिए। यही सोच लक्षणा ने उस तपस्थली को धन्यवाद कहा।
जिसके साथ ही एक विशेष प्रकाश पुंज ने प्रकट हो उन्हें अनेकों शक्तियां और गंभीर होने की विशेष कला प्रदान की। जिसे संकट के समय में भी बिना व्यथित हुए अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता था। इतने दिनों तक तप करने के पश्चात लक्षणा का उग्र मन अब पूर्ण शांति प्राप्त कर चुका था।
लक्षणा ने अनुभव किया, कि उसके अंतर्मन में उठने वाले हर सवालों के जवाब देने में स्वयं सक्षम हो गये है। वह अपने आप को किसी गुलाब की पंखुड़ी से भी हल्का महसूस कर रही थी। शायद जैसा उसको गुरुवार ने बताया था। लक्षणा का लक्ष्य पूरा हुआ और यहां का कार्यकाल भी......
तब लक्षणा ने पुनः शुरुआती चरण को याद करके राहु केतु को धन्यवाद दिया। उस तपस्थली को धन्यवाद दिया, और उस गुफा को भी जिसने उन्हें तपस्या के दौरान पूर्ण सुरक्षा और शांति का माहौल प्रदान किया, उसे भी धन्यवाद कर जैसे वह बाहर निकले,,,,बाहर का माहौल देख वे आश्चर्यचकित थे, क्योंकि प्रवेश तो उन्होंने तलछटी में बनी गुफा में किया था। लेकिन वास्तव में अभी भी अपने सामने मुख्य तपस्थली का दृश्य देख रहे थे।
वहां कदंभ और लक्षणा को अनेकों कंद्राएं, उनसे निकलने वाला दिव्य प्रकाश, ओमकार की ध्वनि यह स्पष्ट कर रही थी, कि वे मुख्य तपस्थली पर है। कुछ ऋषियों ने वहां बहने वाले झरनों के जल को ही आधार बना, तो कुछ ने वायु को आधार बना तप करना शायद उचित समझा था।
यहां विश्व के उत्तम चमत्कार देखे जा सकते थे। जिसकी कल्पना शायद सोच से भी परे थी, क्योंकि सब कुछ यहां शांत सा था। एक तिनके का भी गिरने का शोर इस जगह पर नहीं था। अगर सुनाई देता तो सिर्फ ओ... ओम... की ध्वनि।
इतनी ऊंचाइयों से गिरता जल भी अपने कल कल की आवाज को जैसे अपने भीतर ही समेट लेता था। जो भी हो उस वातावरण का वर्णन करना किसी भी लेखनी में संभव नहीं है। आखिरकार वह समय आ ही गया जिसका इंतजार सभी बेसब्री से कर रहे थे। क्योंकि अब उसे शब्द दिवसीय यात्रा के आरंभ होने का समय आ गया था। जिनसे होकर नागपत्री तक पहुंचने का रास्ता मिलता है।
इस समय संभव है कि साधक उन प्रमुख द्वारों को पार कर जा पहुंचे नागपत्री के समीप,,,,!जिसके दर्शन मात्र से ही असंख्य समस्याओं का समाधान होता है। स्वयं देवतागण सृष्टि के अध्ययन और शक्ति प्राप्ति के साधना जानने हेतु देवलोक से आकर दूर से ही उस नागपत्री को निहारा करते हैं। क्योंकि नागपत्री का हर एक पन्ना, एक विशेष मुहूर्त में खुलता और पुनः नागपत्री में समाहित हो जाता।
इसी दौरान यदि सौभाग्यवश दूर से ही सही किसी एक अभिमंत्रित को भी प्राप्त कर लिया जाए, तो एक जीवन बड़ी सरलता से सिर्फ उसी एक मंत्र के सहारे बिना किसी भी असुविधा के साथ पूर्ण सुख सुविधा के साथ काटा जा सकता है।
उस एक मंत्र का जाप जीवन में एक बार ही पर्याप्त होता है। तब तो उसका निरंतर जाप करने वाला ना जाने किस आलौकिक शक्ति का स्वामी हो सकता है। यह विचार की बात है। लेकिन यह सब कुछ जानते हुए की नागपत्री की रचना सर्व संपन्न देवताओं के लिए नहीं, अपितु ब्रह्मा द्वारा रचित उस सृष्टि के लिए की गई थी। जहां शक्ति की लालसा लिए सभी प्राणी निरंतर प्रत्यनशील रहते हैं। और जो वाकई महत्व समझते हैं देवी शक्तियों का, लेकिन उसमें भी दो सर्वश्रेष्ठ योनियों के गुणों का समावेश होना आवश्यक है।
क्रमशः....